जब कोई प्रगति की जाती है तो वह प्रायः विरोधी शक्तियों को सक्रिय होनेके लिये उकसा देती है, वे शक्तियां उसके प्रभावों को शक्तिभर कम करना चाहती हैं। जब तुम्हें इस प्रकार का कोई निर्णायक अनुभव हो जाय तो तुम्हें अपनी शक्तियों को इधर-उधर बिखेर देने और चेतनाको किसी भी तरहसे बहिर्मुख बनाने से बचते हुए अपने अन्दर केन्द्रित रहना चाहिये और प्रगति को आत्मसात् कर लेना चाहिये।
सन्दर्भ : श्रीअरविन्द के पत्र (भाग-३)
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