आज से हम यह निश्चय कर लें कि हम अपने-आपको प्रतिदिन पूरी सच्चाई तथा सदिच्छा के साथ ऊपर उठायेंगे; एक तीव्र अभीप्सा के साथ उस सत्य
के सूर्य की ओर, उस चरम प्रकाश की ओर बढ़ेंगे जो विश्व का बौद्धिक जीवन तथा उसका स्रोत है, ताकि वह प्रकाश हमारे अन्दर पूर्ण रूप से
प्रवेश पाकर अपनी महान् ज्योति से हमारे मनों, हृदयों, सभी विचारों और कर्मों को प्रबुद्ध कर दे।
तभी हमें प्राचीन काल के उन महान् गुरु के निर्देश का अनुसरण करने का अधिकार तथा गौरव प्राप्त होगा जिनका कथन है: “करुणा से उमड़ते हुए हृदय के साथ इस संसार में प्रवेश करो जो कष्ट से भरपूर है। शिक्षक बनो और जहाँ-जहाँ अन्धकार तथा अज्ञान का साम्राज्य है वहाँ-वहाँ ज्ञान का दीपक जला दो।”
संदर्भ : पहले की बातें
यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…
जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…
.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…
अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…