एकांतवास का प्रेम इस बात का लक्षण है कि तुममें ज्ञान कि खोज करने की प्रवृत्ति है; परंतु स्वयं ज्ञान केवल तभी प्राप्त होता है जब हम भीड़-भाड़ के अंदर, संग्राम और हाट-बाजार के अंदर एकांतता का स्थायी बोध प्राप्त कर लेते है ।
संदर्भ : विचारमाला और सूत्रावली
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…