मेरी प्यारी माँ, काश ! मैं अपनी अज्ञानी सत्ता को यह विश्वास दिला पाता कि तुम्हें अपने हृदय के केंद्र में पाना संभव है ।
यह तुम्हारें हृदय को विश्वास दिलाने का प्रश्न नहीं है, तुम्हें इस उपस्थिती का अनुभव होना चाहिये और तब तुम जान पाओगे कि अपनी गहराइयों में तुम्हारा हृदय सदा इस उपस्थिती के बारें में सचेतन रहा है ।
संदर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड-१६)
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