उत्साह


महर्षि श्री अरविंद का चित्र सन १९५०

किसी व्यक्ति को निरुत्साहित करना अनुचित है, परंतु मिथ्या उत्साह देना अथवा किसी अनुचित वस्तु के लिए उत्साहित करना ठीक नहीं है । कठोरता का कभी-कभी उपयोग करना पड़ता है । (यद्यपि उसका अत्यधिक उपयोग नहीं होना चाहिए) जबकि इसके बिना अनुचित बात पर होने वाले हठीले आग्रह को सुधारा नहीं जा सकता है ।

संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (भाग -२)


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