मैंने उचित मनोवृत्ति की शक्ति के अनेक उदाहरण देखे हैं। मैंने देखा है कि अकेले आदमी की उचित मनोवृत्ति के कारण जन-समूह महाविपत्ति से बच गये हैं। लेकिन यह ऐसी मनोवृत्ति होनी चाहिये जो शरीर को अपनी साधारण प्रतिक्रियाओं में छोड़ कर कहीं किन्हीं ऊंचाइयों पर नहीं रहती। अगर तुम इस तरह ऊंचाइयों पर रहो और कहो, “भगवान् की इच्छा पूरी हो”, तो हो सकता है कि इसके होते हुए भी तुम मारे जाओ। क्योंकि हो सकता है कि तुम्हारा शरीर बिलकुल अदिव्य हो और भय से कांपता रहे। जरूरी बात यह है कि सत्य-चेतना को स्वयं शरीर के अन्दर प्रतिष्ठित रखा जाये, जरा भी भय न हो, और सत्ता में भागवत शान्ति भरी हो।
संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९२९-१९३१
श्रीअरविंद हमसे कहते हैं कि सभी परिस्थितियों में प्रेम को विकीरत करते रहना ही देवत्व…
... सामान्य व्यक्ति में ऐसी बहुत-से चीज़ें रहती हैं, जिनके बारे में वह सचेतन नहीं…
भगवान मुझसे क्या चाहते हैं ? वे चाहते हैं कि पहले तुम अपने-आपको पा लो,…
सूर्यालोकित पथ का ऐसे लोग ही अनुसरण कर सकते हैं जिनमें समर्पण की साधना करने…
एक चीज़ के बारे में तुम निश्चित हो सकते हो - तुम्हारा भविष्य तुम्हारें ही…