ईश्वर : श्रीअरविन्द की कविता

 

तू जो कि सर्वव्याप्त है समस्त निचले लोकों में ,

फिर भी है विराजमान बहुत ऊपर ,

उन सबका स्वामी जो कार्य करते हैं शासक है और हैं ज्ञानी ,

प्रेम का अनुचर !

 

तू जो कि एक नन्हे कीट और मिट्टी के ढेले की भी

नहीं करता है अवहेलना ,

इसलिए इस विनम्रता के कारण हम जानते हैं

कि तू ही है परमात्मा  ।

 

सन्दर्भ : श्रीअरविंद काव्य चयन

शेयर कीजिये

नए आलेख

हर किसी के पास मत जाओ

जो लोग इस कारण यातना भोगते हैं कि उन्हें किसी तथाकथित संन्यासी से परिचित होने…

% दिन पहले

अप्रसन्नता और कपट

तुम दुःखी, बहुत उदास, निरुत्साहित और अप्रसन्न हो जाते हो : "आज चीज़ें अनुकूल नहीं…

% दिन पहले

भूल और प्रगति

जब कोई भूल हो तो उसका हमेशा प्रगति करने के लिए उपयोग करना चाहिये, एक…

% दिन पहले

शक्ति को खींचने की कोशिश

मैं तुम्हें एक चीज की सलाह देना चाहती हूँ। अपनी प्रगति की इच्छा तथा उपलब्धि…

% दिन पहले

भगवान तथा औरों के प्रति कर्तव्य

जिसने एक बार अपने-आपको भगवान् के अर्पण कर दिया उसके लिए इसके सिवा कोई और…

% दिन पहले

मानवजाति की भलाई

जो व्यक्ति पूर्ण योग की साधना करना चाहता है  उसके लिये मानवजाति की भलाई अपने-आप…

% दिन पहले