तू जो कि सर्वव्याप्त है समस्त निचले लोकों में ,
फिर भी है विराजमान बहुत ऊपर ,
उन सबका स्वामी जो कार्य करते हैं शासक है और हैं ज्ञानी ,
प्रेम का अनुचर !
तू जो कि एक नन्हे कीट और मिट्टी के ढेले की भी
नहीं करता है अवहेलना ,
इसलिए इस विनम्रता के कारण हम जानते हैं
कि तू ही है परमात्मा ।
सन्दर्भ : श्रीअरविंद काव्य चयन
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…