अधः लोक की अन्ध शक्तियाँ
अब भी किन्तु प्रबल हैं।
आरोहण की गति धीमी है,
लम्बा बहुत समय है।
तब भी सत्य उठेगा ऊपर,
तब भी शान्ति बढेगी,
आयेगा वह दिन जन-जन
हिलमिल जब एक बनेंगे।
इसीलिए तो एक क़दम
बढ़ना भी बड़ी विजय है।
ज़रा-ज़रा कर दिव की ओर
मही को मुड़ना होगा।
धूमिल आत्मा एक रोज़
ज्योतिर्जग में जागेगी।
सन्दर्भ : सावित्री
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