आन्तरिक एकाग्रता की साधना में निम्नलिखित चीजें सम्मिलित हैं :
१. हृदय-केन्द्र में चेतना को स्थिर करना तथा वहां भगवती माता के विचार, छवि या नाम पर, जो भी तुम्हें सबसे आसान लगे, एकाग्रचित्त होना।
२. हृदय में इस एकाग्रता के द्वारा मन का क्रमिक और प्रगतिशील शमन।
३. हृदय में भगवती माता की उपस्थिति तथा मन, प्राण और क्रिया पर उनके नियन्त्रण के लिए अभीप्सा।
परन्तु मन को स्थिर करने तथा आध्यात्मिक अनुभूति प्राप्त करने के लिए पहले. प्रकति को शद्ध करना तथा इसे तैयार करना आवश्यक है। इसमें कभी-कभी बहुत वर्ष लग जाते हैं। सही मनोभाव के साथ किया गया कार्य इसके लिए सरलतम साधन है—यानी, कामना, मांग या अहंकार की सभी गतियों को, जब वे आयें, अस्वीकार करते हुए, कामना या अहंकार से मुक्त होकर भगवती माता को अर्पित आहुति के रूप में उनका स्मरण करते हुए, उनसे इस प्रार्थना के साथ कार्य करना कि वे अपनी शक्ति को अभिव्यक्त करें और क्रिया को अपने हाथ में ले लें जिससे वहां भी, न केवल आन्तरिक नीरवता में ही, तुम उनकी उपस्थिति और कार्य-प्रणाली को अनुभव कर सको।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र
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