आघात और परीक्षाएँ हमेशा भागवत कृपा के रूप में हमें अपनी सत्ता में वे बिन्दु दिखाने आती हैं जहां हमारे अंदर कमी है और जिन गतिविधियों में हम अपनी मानसिक सत्ता और प्राणिक सत्ता की चिल्लपों सुन कर अपनी अंतरात्मा की ओर पीठ कर लेते हैं ।
अगर हम इन आध्यात्मिक आघातों को उचित नम्रता के साथ स्वीकारना जानें तो हम निश्चय ही एक छलांग में काफी दूरी पार कर लेंगे।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…