दिन में आधे घंटे का ध्यान संभव होना चाहिये – यदि चेतना में केवल एकाग्रता की आदत डालनी हो, जो पहले तो कार्य करते समय कम बहिर्मुख बनने में मदद करेगी और, दूसरा, ऐसी ग्रहणशील प्रवृति विकसित करेगी जिसका लाभ कार्य करते समय भी मिल सकता है ।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (भाग -२)
जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…
‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…
सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…