एक बच्चे की तरह बन जाना और अपने-आपको संपूर्णत: दे देना तब तक असंभव है, जब तक कि चैत्य पुरुष का प्रभुत्व न हो और वह प्राण कि अपेक्षा अधिक बलशाली न हो।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (भाग-२)
एक बच्चे की तरह बन जाना और अपने-आपको संपूर्णत: दे देना तब तक असंभव है, जब तक कि चैत्य पुरुष का प्रभुत्व न हो और वह प्राण कि अपेक्षा अधिक बलशाली न हो।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (भाग-२)
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