इन मायावी वनों में एक देवशिशु खेल रहा है,
आत्मभाव की धाराओ के तट पर बंशी बजाता रसमाधुरी बहा रहा है,
कब उसकी पुकार की ओर मुड़ेंगे वह उस घड़ी की प्रतीक्षा में हैं ।
संदर्भ : सावित्री
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…