तुम्हें आंतरिक परिवर्तन के लिए निरंतर अभीप्सा करनी चाहिये, तुम्हारें अंदर यह इच्छा होनी चाहिये कि प्रकाश तुम्हारें अंधेरे भौतिक मन में आये, और तुम्हें शांति के साथ इस अभीप्सा तथा इच्छा के परिणाम की प्रतीक्षा करनी चाहिये।
संदर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड-१७)
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