अपने अहंकार को निकाल फेंकना, उसे एक रद्दी कपड़े की तरह गिरा देना।
इसके लिए जो प्रयास करना पड़ता है, परिणाम उसके योग्य होता है, और फिर तुम मार्ग पर अकेले नहीं होते। यदि तुम्हें विश्वास हो तो तुम्हें सहायता मिलती है।
अगर पल भर के लिए भी तुम्हारा भागवत कृपा के साथ सम्पर्क हुआ हो – उस अद्भुत कृपा के साथ जो तुम्हें ले चलती है, मार्ग पर तेज चलाती है, जो तुम्हें यह भी भुला देती है कि तुम्हें तेजी करनी है-उसके
साथ पल भर का भी सम्पर्क हुआ हो तो तुम कोशिश कर सकते हो कि उसे भूलने न पाओ और फिर एक बालक-की-सी निष्कपटता, बच्चे की सरलता के साथ, जिसके सामने कोई झमेले नहीं हैं, तुम अपने-आपको उस ‘कृपा’ के हाथों में सौंप सकते हो और उसे सब कुछ करने दे सकते हो।
जरूरी यह है कि उसकी न सुनो जो प्रतिरोध करता है, उस पर विश्वास न करो जो खण्डन करता है-एक विश्वास हो, सच्चा विश्वास, ऐसा विश्वास हो जिसमें तुम अपने-आपको बिना हिसाब-किताब किये,
बिना सौदेबाजी के, पूरी तरह से दे देते हो। विश्वास! ऐसा विश्वास जो कहता है-“यह करो, मेरे लिए यह करो, यह मैं तुम्हारे ऊपर छोड़ता हूँ ।”
यही उत्तम उपाय है।
संदर्भ : प्रश्न और उत्तर (१९५७-१९५८)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…