अहंकार और अन्तरात्मा


श्रीअरविंद आश्रम की श्रीमाँ के चरण

अहंकार उसके बारे में सोचता है जो उसके पास नहीं है और जिसे वह चाहता है। यही उसका निरन्तर  मुख्य काम है ।

अन्तरात्मा जानती है कि उसे क्या दिया जाता है और वह अनन्त कृतज्ञता में निवास करती है।

संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)


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