लता जौहर बचपन में प्रखर स्वभाव की बालिका थी। लगभग ५० वर्ष पूर्व की बात है, एक दिन बालिका लता किसी बात पर कुपित हो गयी और उसने अपने छात्रावास की देखभाल करने वाली दीदी से कह दिया कि वह खाना नहीं खायेगी। दीदी ने बिना किसी प्रकार क्रोध किये, बहुत शांति से, उसे समझाया और विनती की वह खाना खा ले किन्तु लता अपने निश्चय पर अडिग रही और खाना खाने को तैयार नहीं हुई। अब इस महिला ने श्रीमाँ को सूचित किया।
जब लता श्रीमाँ से मिलने गयी तब श्रीमाँ ने मधुर स्वर में पूछा, “तुम खाना क्यों नहीं खा रहीं ?” इतना सुनते ही लता के संयम का बांध टूट गया। वह फुट-फुट कर रोने लगी और रोती ही गयी। श्रीमाँ ने उसका हाथ थाम लिया और उसे रोने दिया। उसके बाद उन्होने बड़े प्रेम से लता से कहा, ” देखो मेरी बच्ची, अभी तुम बहुत छोटी हो; अब तुम्हारे शरीर का निर्माण हो रहा है। अब तुम अच्छी तरह नहीं खायोगी तो तुम्हारा स्नायुमंडल दुर्बल हो जायेगा। बाद में तुम्हें समझ में आयेगा कि छोटी उम्र में ठीक प्रकार खाना कितना आवश्यक है। भविष्य में जब तुम्हें क्रोध आए तो अपने शरीर को दंड न दो, पहले खा लो और फिर क्रोध करो। ” इसके बाद श्रीमाँ ने लता को केक, चॉक्लेट और कुछ अन्य वस्तुएँ खाने को दीं।
उसके बाद लता ने कभी भी क्रोध के कारण खाना नहीं छोड़ा, और उसका क्रोध भी कम हो गया ।
संदर्भ : श्रीअरविंद एवं श्रीमाँ की दिव्य लीला
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