मधुर मां,
अन्तरात्मा की क्या भूमिका है?
अन्तरात्मा के बिना तो हमारा अस्तित्व ही न होगा!
अन्तरात्मा वह है जो कभी भी भगवान् को छोड़े बिना उनसे आती है और अभिव्यक्त होना बन्द किये बिना उनके पास लौट जाती है।
अन्तरात्मा भगवान् है जिसे भगवान् होना छोड़े बिना व्यक्ति बनाया गया है।
अन्तरात्मा में व्यक्ति और भगवान् शाश्वत रूप से एक हैं; अतः, अपनी अन्तरात्मा को पाने का अर्थ है भगवान् को पाना, अपनी अन्तरात्मा के साथ तादात्म्य पाने का अर्थ है भगवान् के साथ एक होना।
अतः, यह कहा जा सकता है कि अन्तरात्मा का कार्य है मनुष्य को एक सच्ची सत्ता बनाना।
संदर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड-१६)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…