अनिवार्य अवस्था


श्रीअरविंद आश्रम की श्रीमाँ दर्शन देते हुये

जो कुछ ग्रहणशील नहीं है वह सब कुचले जाने का अनुभव करता है, लेकिन जो ग्रहणशील है वह इसके विपरीत एक… एक प्रबल विस्तार का अनुभव करता है।

एक ही समय में दोनों।…

हां, जो चीज कुचली जाती है वह, वह चीज है जो प्रतिरोध करती है, जो ग्रहणशील नहीं है। उसे केवल अपने-आपको खोल देना है। तब वह चीज मानों… दुर्जेय वस्तु बन जाती है…। यह असाधारण है। यह हमारी शताब्दियों की आदत है, है न, जो प्रतिरोध करती है और ऐसा संस्कार देती
है। लेकिन जो कुछ भी खुल जाता है… व्यक्ति को ऐसा लगता है मानों वह बड़ा, बड़ा, बड़ा होता जा रहा है…। यह बहुत भव्य है। ओह ! यह…

सन्दर्भ : पथ पर 


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