केवल अपने लिए अतिमानस को प्राप्त करना मेरा अभिप्राय बिल्कुल नहीं है – मैं अपने लिए कुछ भी नहीं कर रहा; क्योंकि मुझे अपने लिए किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है, न तो मोक्ष की और न अतिमानसिक स्थिति की। यदि मैं अतिमानसीकरण के लिए कोशिश कर रहा हूँ तो वह सिर्फ़ इसलिए कि पृथ्वी-चेतना के लिए इस काम का किया जाना आवश्यक है . . .।स्वयं मेरा अतिमानसिक स्थिति को प्राप्त करना पृथ्वी-चेतना के लिए अतिमानस के द्वार खोलने की कुंजीमात्र है। मेरा उसको केवल प्राप्त करने के उद्देश्य से ही प्राप्त करना बिल्कुल बेकार होगा।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (भाग-२)
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…