केवल अपने लिए अतिमानस को प्राप्त करना मेरा अभिप्राय बिलकुल नहीं है-मैं अपने लिए कुछ भी नहीं कर रहा; क्योंकि मुझे अपने लिए किसी चीज की जरूरत नहीं है, न तो मोक्ष की और न अतिमानसिक स्थिति की। यदि मैं अतिमानसीकरण के लिए कोशिश कर रहा हूं तो वह सिर्फ इसलिए कि पृथ्वी-चेतना के लिए इस काम का किया जाना आवश्यक है….। स्वयं मेरा अतिमानसिक स्थिति को प्राप्त करना पृथ्वी-चेतना के लिए अतिमानस के द्वार खोलने की कुञ्जीमात्र है। मेरा उसको केवल
प्राप्त करने के उद्देश्य से ही प्राप्त करना बिलकुल बेकार होगा।
संदर्भ : श्रीअरविंद अपने विषय में
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