अतिमानव होने का अर्थ

अतिमानव होने का अर्थ है, दिव्य जीवन जीना, देव होना, क्योंकि देवगण भगवान् की शक्तियाँ हैं। वह मानवता के बीच भगवान् की शक्ति है।

भागवत सत्ता में जीना और दिव्य आत्मा की चेतना और उसके आनन्द, उसकी इच्छा और उसके ज्ञान को अपने ऊपर अधिकार करने देना, उसे अपने साथ और अपने द्वारा खेलने देना—यही सच्चा अर्थ है।

यही (सत्ता के) पर्वत-शिखर पर होने वाला तेरा रूपान्तर है। यह अपने अन्दर भगवान् को खोजना और उन्हें अपने आगे सभी चीज़ों में प्रकट करना है। उनकी सत्ता में निवास कर, उनकी ज्योति
से चमक, उनकी शक्ति से कार्य कर, उनके आनन्द के साथ आनन्द मना। वह अग्नि और वह सूर्य और वह सागर बन जा। वह आनन्द, वह महानता और वह सुन्दरता बन जा।

जब तू यह कर ले, भले एक अंश में ही, तो तू अतिमानवता के पहले चरण को पा लेगा।

संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र 

शेयर कीजिये

नए आलेख

रूपांतर का मार्ग

भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…

% दिन पहले

सच्चा ध्यान

सच्चा ध्यान क्या है ? वह भागवत उपस्थिती पर संकल्प के साथ सक्रिय रूप से…

% दिन पहले

भगवान से दूरी ?

स्वयं मुझे यह अनुभव है कि तुम शारीरिक रूप से, अपने हाथों से काम करते…

% दिन पहले

कार्य के प्रति मनोभाव

अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…

% दिन पहले

चेतना का परिवर्तन

मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…

% दिन पहले

जीवन उत्सव

यदि सचमुच में हम, ठीक से जान सकें जीवन के उत्सव के हर विवरण को,…

% दिन पहले