अतिमानव होने का अर्थ है, दिव्य जीवन जीना, देव होना, क्योंकि देवगण भगवान् की शक्तियाँ हैं। वह मानवता के बीच भगवान् की शक्ति है।
भागवत सत्ता में जीना और दिव्य आत्मा की चेतना और उसके आनन्द, उसकी इच्छा और उसके ज्ञान को अपने ऊपर अधिकार करने देना, उसे अपने साथ और अपने द्वारा खेलने देना—यही सच्चा अर्थ है।
यही (सत्ता के) पर्वत-शिखर पर होने वाला तेरा रूपान्तर है। यह अपने अन्दर भगवान् को खोजना और उन्हें अपने आगे सभी चीज़ों में प्रकट करना है। उनकी सत्ता में निवास कर, उनकी ज्योति
से चमक, उनकी शक्ति से कार्य कर, उनके आनन्द के साथ आनन्द मना। वह अग्नि और वह सूर्य और वह सागर बन जा। वह आनन्द, वह महानता और वह सुन्दरता बन जा।
जब तू यह कर ले, भले एक अंश में ही, तो तू अतिमानवता के पहले चरण को पा लेगा।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र
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