तुम जिस अचंचलता और प्रकाश के अवतरण का अनुभव कर रहे हो वह इस बात का चिन्ह है कि तुम्हारे अन्दर साधना सचमुच शुरू हो गयी है। इससे पता चलता है कि अब तुम सचेतन रूप से ‘दिव्य शक्ति’ और उसके कार्य के प्रति खुले हो। सत्ता के अन्दर अचंचलता और प्रकाश का अवतरण योग की नींव के आधार का आरम्भ है । पहले इसका अनुभव मन और ऊपरी भाग में ही हो सकता है लेकिन बाद में वह नीचे की ओर बढ़ता है, यहां तक कि सभी चक्रों को छूता है और सारे शरीर में इसका अनुभव होता है । पहले यह केवल दो-एक क्षण के लिए आता है, बाद में ज्यादा लम्बे समय तक रहता है।
दूसरी अनुभूतियों से लगता है कि तुम्हारे अन्दर अन्तर्दर्शन की क्षमता खुल रही है। यह भी योग का एक भाग है। तुमने जो अग्नि देखी है वह शायद प्राणिक सत्ता में अभीप्सा की अग्नि हो । तुमने जो दूसरी चीजें देखी हैं वे इतनी निश्चित नहीं हैं कि उनका अर्थ किया जा सके।
अपनी प्रगति जारी रखो ।
हमारे आशीर्वाद और रक्षण हमेशा तुम्हारे साथ हैं ।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग -२)
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…