जब तुम प्रकाश को देखते हो तो इसे अंतर्दर्शन कहते है । जब तुम प्रकाश को अपने अन्दर प्रवेश करता हुआ अनुभव करते हो तो यह अनुभूति होती है, जब प्रकाश तुम्हारें अन्दर आकार स्थित हो जाता है और अपने साथ आलोक और ज्ञान को लाता है तो यह साक्षात्कार कहलाता है । परन्तु समान्यतया अंतर्दर्शन अनुभूति भी कहलाते हैं ।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…