अंतरात्मा का अनुसरण


महर्षि श्रीअरविंद का चित्र

यदि तुम्हारी अंतरात्मा सर्वदा रूपांतर के लिए अभीप्सा करती है तो बस उसी का अनुसरण तुम्हें करना होगा । भगवान को खोजना या यों कहें कि भगवान के किसी रूप कों चाहना — क्योंकि यदि किसी में रूपांतर साधित न हो तो वह संपूर्ण रूप से भगवान को उपलब्ध नहीं कर सकता–कुछ लोंगों के लिये पर्याप्त हो सकता है, पर उन लोगों के लिए नहीं हो सकता जिनकी अंतरात्मा  की अभीप्सा पूर्ण दिव्य परिवर्तन साधित करने की है।

सन्दर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (भाग – २)


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