केवल ईश्वर के ही प्रभाव से प्रभावित होना, और किसी के प्रभाव को स्वीकार न करना – यही पवित्रता है ।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (भाग -२)
केवल ईश्वर के ही प्रभाव से प्रभावित होना, और किसी के प्रभाव को स्वीकार न करना – यही पवित्रता है ।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (भाग -२)
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