“आध्यात्मिक जीवन की तैयारी करने के लिए किस प्रारम्भिक गुण का विकास करना चाहिये?”
इसे मैंने बहुत बार बतलाया है, परन्तु यह उसे दोहराने का एक सुअवसर है : वह है सच्चाई।
एक ऐसी सच्चाई जो पूर्ण और निरपेक्ष बन जानी चाहिये, क्योंकि आध्यात्मिक पथ में एकमात्र सच्चाई ही तुम्हारी संरक्षिका है। यदि तुम सच्चे-निष्कपट नहीं हो तो निश्चित रूप से अगले ही पग पर गिर कर
अपना सिर फोड़ लोगे। सभी प्रकार की शक्तियां, संकल्प, प्रभाव, सत्ताएं उपस्थित रहती और इस ताक में रहती हैं कि उस सच्चाई के अन्दर अत्यन्त छोटी-सी भी दरार हो जाये, और वे तुरन्त उस छिद्र के रास्ते भीतर घुस आती हैं तथा तुम्हें अस्तव्यस्त अवस्था में फेंकना शुरू कर देती हैं।
इसलिए कोई भी चीज करने, कोई भी चीज आरम्भ करने, कोई भी चीज करने की कोशिश करने से पहले, सबसे पहले इस विषय में निस्सन्दिग्ध हो जाओ कि तुम केवल उतने ही सच्चे नहीं हो जितने कि
तुम हो सकते हो, बल्कि उससे भी अधिक बनने की इच्छा रखते हो। क्योंकि एकमात्र वही तुम्हारा संरक्षण है।
संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९५६
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