मृत्यु की अनिवार्यता पर विजय
जब शरीर बढ़ती हुई पूर्णता की ओर सतत प्रगति करने की कला सीख ले तो हम मृत्यु की अनिवार्यता पर विजय पाने के पथ पर...
जब शरीर बढ़ती हुई पूर्णता की ओर सतत प्रगति करने की कला सीख ले तो हम मृत्यु की अनिवार्यता पर विजय पाने के पथ पर...
कृपया बतलाइये कि मैं अपने अतीत से कैसे पिण्ड छुड़ा सकता हूँ, जो इतने जोर से चिपका रहता है । अतीत से पिण्ड छुड़ाना इतना...
हर एक के अंदर अपने अहंकार होते हैं और सभी अहंकार एक-दूसरे से टकराते रहते है । आदमी स्वतंत्र सत्ता तभी बन सकता है जब...
मैं आपसे फिर से पूछता हूँ माँ, वह कौन-सी चीज़ है जो मेरी सत्ता को विभक्त करती है ? संघर्ष है उसके बीच जो चेतना...
भगवान मुझसे क्या चाहते हैं ? वे चाहते हैं कि पहले तुम अपने-आपको पा लो, कि तुम अपनी सच्ची सत्ता, अपनी चैत्य सत्ता के द्वारा...
मैं रो रहा हूँ । न जाने क्यों । मन करें तो रो लो। परंतु चिंता न करो। वर्षा के बाद सूर्य तेजी से चमकता...
मधुर माँ, हम निश्चय के साथ कब कह सकते है कि हमने श्रीअरविंद का योग शुरू कर दिया है ? उसका निश्चित चिन्ह क्या है...
मधुर माँ, समय-समय पर बुरे विचारों का उफान आ जाता है; मेरा मन आवेशों का दलदल बन जाता है जिसमें मैं एक कीड़े की तरह...
शांत रहो और देखो। परिणाम निश्चित है – उपाय और समय निश्चित नहीं है । आशीर्वाद | संदर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड -१६)
प्रेम सबके साथ है, प्रत्येक की प्रगति के लिये समान रूप से कार्य कर रहा है-लेकिन विजय उन्ही में पाता है जो उसकी परवाह करते...