
श्रीमाँ की वाणी
यह कब कहा जा सकता है कि व्यक्ति आन्तरिक रूप से माँ की वाणी सुनने को तैयार है? जब व्यक्ति के अन्दर समता, विवेक और...
यह कब कहा जा सकता है कि व्यक्ति आन्तरिक रूप से माँ की वाणी सुनने को तैयार है? जब व्यक्ति के अन्दर समता, विवेक और...
मैं और श्रीमाँ एक और समान हैं। और साथ ही वे यहाँ परमा हैं और उनका अधिकार है कि वे कार्य के लिए जो उत्तम...
तुम माँ के बच्चे हो और माँ का अपने बच्चों के प्रति प्रेम असीम होता है, और वे उनके स्वभाव के दोषों को बड़े धीरज...
माताजी और मैं दो रूपों में एक ही ‘शक्ति’ का प्रतिनिधित्व करते हैं – अतः स्वप्न में देखा हुआ तुम्हारा अंतरदर्शन पूरी तरह से तर्कसंगत...
प्रश्न-जब साधक में न तो अभीप्सा ही उठती हो, न कोई अनुभूति ही होती हो, तब उसे साधना जारी रखने के लिए क्या करना चाहिये?...
कई बार काम करते हुए मैं सोचा करता हूं कि आखिर इसका प्रयोजन क्या है? कृपया बतलाइये कि काम करते हुए मेरी क्या वृत्ति होनी...
श्रीमाँ को अपने अंदर कार्य करने देने के लिए मुझे कौन सा व्यक्तिगत प्रयास करने की आवश्यकता है ? आवश्यकता है अपने-आपको सही चीजों –...
भूल या सजा देने का कोई प्रश्न ही नहीं है-अगर लोगों को हम उनकी भूलों के लिए अपराधी ठहरायें या उन्हें सजा दें, और साधकों...
जीवनयात्रा में समस्त भय, संकट और विपदा का सामना करने के लिए कवच के रूप में तुम्हारे पास केवल दो ही चीजों का होना आवश्यक...
श्रीमाँ श्रीअरविन्द’ की शिष्या नहीं हैं। उन्हें मेरे समान ही सिद्धि और अनुभूति प्राप्त थी। श्रीमाँ की साधना छोटी उम्र से ही आरम्भ हो गयी...