
ईश्वर : श्रीअरविन्द की कविता
तू जो कि सर्वव्याप्त है समस्त निचले लोकों में , फिर भी है विराजमान बहुत ऊपर , उन सबका स्वामी जो कार्य करते हैं...
तू जो कि सर्वव्याप्त है समस्त निचले लोकों में , फिर भी है विराजमान बहुत ऊपर , उन सबका स्वामी जो कार्य करते हैं...
अंततः मुझे मिला इस मधुर और भीषण जगत में आत्मा के जन्म का उद्देश्य, मैंने अनुभव किया पृथ्वी का क्षुधित हृदय जो अभीप्सा करता है...
तेरे स्वर्णिम प्रकाश का मेरे मस्तिष्क में हुआ अवतरण और मन के धुंधले कक्ष हो गये सूर्यायित प्रज्ञा के तान्त्रिक तल के लिए एक उत्तर...
सूक्ष्म लयात्मक प्रवाह में होता है मेरे श्वास का संचलन; यह मेरे अंगों को दिव्य शक्ति से करता परिपूरन : मैंने पिया है अनन्त को...
(कृष्ण का नृत्य, काली का नृत्य) विश्व-नृत्य की हैं यहां दो ताल। सदा हम सुनते हैं काली के पदों का सञ्चरण दुःख, पीड़ा तथा भाग्य...
तेरे आनन्द से अब हर दृष्टि है अमर : मेरी आत्मा सम्मोहित नयनों से करने आयी है दर्शनः फट गया एक आवरण और अब वे...
प्रकाश, अन्तहीन प्रकाश! अंधेरे को नहीं अब अवकाश, जीवन की अज्ञानी खाइयां तज रहीं अपनी गोपनता : विशाल अवचेतन-गहराइयां जो पहले अज्ञात थीं फैली हैं...
एक तरु रेतीले सर-तीर बढ़ाये अपने लंबे डाल अंगुलियों से ऊपर की ओर चाहता छूना गगन विशाल । किन्तु पायेंगे क्या वे स्वर्ग प्रणय-रस...
तीव्र झंझावात और तूफ़ानी मौसम के थपेड़ों के बीच होकर मैं चल पड़ा पहाड़ी की छोटी और बीहड़ भूमि पर । कौन मेरे साथ आएगा...