
संतुष्ट रहो
तुम जितना पाते हो उससे संतुष्ट रहने की कोशिश करो-क्योंकि यह ग्रहणशीलता का मामला है-लोग जितना ग्रहण कर सकते हैं ,मैं उससे कहीं अधिक देती...
तुम जितना पाते हो उससे संतुष्ट रहने की कोशिश करो-क्योंकि यह ग्रहणशीलता का मामला है-लोग जितना ग्रहण कर सकते हैं ,मैं उससे कहीं अधिक देती...
सच्ची नम्रता यह जानने में है कि केवल परम चेतना, परम इच्छा का ही अस्तित्व है और “मैं” का अस्तित्व नहीं है । संदर्भ :...
स्थिरता और तमस में घपला मत करो। स्थिरता है, आत्म-संयत शक्ति, अचंचल और सचेतन ऊर्जा, आवेशों पर प्रभुत्व और अचेतन प्रतिक्रियाओं पर नियंत्रण । कार्य...
तुम जिस अचंचलता और प्रकाश के अवतरण का अनुभव कर रहे हो वह इस बात का चिन्ह है कि तुम्हारे अन्दर साधना सचमुच शुरू हो...
अहंकार उसके बारे में सोचता है जो उसके पास नहीं है और जिसे वह चाहता है। यही उसका निरन्तर मुख्य काम है । अन्तरात्मा जानती...
आघात और परीक्षाएँ हमेशा भागवत कृपा के रूप में हमें अपनी सत्ता में वे बिन्दु दिखाने आती हैं जहां हमारे अंदर कमी है और जिन...
जब तुम ध्यान में बैठो तो तुम्हें बालक की तरह निष्कपट और सरल होना चाहिये। तुम्हारा बाह्य मन बाधा न दे, तुम किसी चीज़ की...
मैं नहीं मानती की गुफा की साधना आसान हे-केवल, वहां कपट छिपा रहता है जबकि क्रियाकलाप और जीवन में वह प्रकट हो जाता है ।...
सत्य लकीर की तरह नहीं सर्वांगीण है, वह उत्तरोत्तर नहीं बल्कि समकालिक है। अतः उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता : उसे जीना...
भगवान हमेशा तुम्हारें हृदय में आसीन होते हैं , सचेतन रूप से जीवित रहते है । संदर्भ : माताजी के वचन (भाग -२)