भौतिक जगत में, हमें जो स्थान पाना है उसके अनुसार हमारे जीवन और कार्य के लिए जो कुछ अनिवार्य हो…
‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य ‘मां’ के बालक हैं। ‘उनका’…
जीवन का एक प्रयोजन है-और वही एकमात्र सच्चा और स्थायी प्रयोजन है-वह हैं भगवान् । 'उनकी' ओर मुड़ो तो रिक्तता…
जब तुम ध्यान में बैठो तो तुम्हें बालक की तरह निष्कपट और सरल होना चाहिये। तुम्हारा बाह्य मन बाधा न…
जगत एक बहुत बड़े परिवर्तन की तैयारी कर रहा है । सहायता करोगे ? नववर्ष के संदेश में आपने जिस…
सहते चलो और तुम्हारी विजय होगी। विजय सबसे अधिक सहनशील के हाथों में आती है। और भागवत कृपा और भागवत…
हमारा काम चाहे जो हो, हम चाहे जो करते हों, हमें उसे सचाई, ईमानदारी और अति सावधानी के साथ करना…
भगवान की सेवा से बढ़ कर और कोई हर्ष नहीं हो सकता। संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
अहंकार के खेल के बिना कोई संघर्ष न होंगे और अगर प्राण में नाटक करने की वृत्ति न हो तो…
१. दूसरों पर नियन्त्रण रख सकने के लिए स्वयं अपने ऊपर पूर्ण नियन्त्रण पाना अनिवार्य शर्त है। २. कोई पसन्द…