
ग्रहनशीलता
ग्रहणशील होने का अर्थ है, देने की प्रबल इच्छा का होना और तुम्हारें पास जो कुछ है, तुम जो कुछ हो और जो कुछ करते...
ग्रहणशील होने का अर्थ है, देने की प्रबल इच्छा का होना और तुम्हारें पास जो कुछ है, तुम जो कुछ हो और जो कुछ करते...
(एक शिष्य को श्रीमां का पत्र) मानव जीवन में सभी कठिनाइयों, सभी विसंगतियों, सभी नैतिक कष्टों का कारण है हर एक के अन्दर अहंकार की...
नियंत्रण के बिना कोई समुचित काम संभव नहीं है । नियंत्रण के बिना समुचित जीवन संभव नहीं है । और सबसे बढ़कर, नियंत्रण के बिना...
जब तुम अपने हृदय और विचार में मेरे ओर श्रीअरविन्द के बीच कोई भेद न करोगे, जब अनिवार्य रूप से श्रीअरविन्द के बारे में सोचना...
विभिन्न मूल्य रखने वाले लोग एक साथ, सामंजस्य में कैसे रह सकते और काम कर सकते है ? इसका समाधान यह है कि अपने अंदर...
श्रीअरविंद परम पुरुष के यहाँ से धरती पर एक नयी जाति और एक नए जगत – ‘अतिमानसिक ‘-की घोषणा करने आये है। आओ, हम पूरी...
मैं किसी राष्ट्र की, किसी सभ्यता की, किसी समाज की, किसी जाति की नहीं हूं, मैं भगवान् की हूं । मैं किसी स्वामी, किसी शासक,...
जितना कम हो सके उतना कम बोलो। जितना अधिक हो सके उतना अधिक काम करो । संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-१)
जब तुम अपने हृदय और विचार में मेरे ओर श्रीअरविन्द के बीच कोई भेद न करोगे, जब अनिवार्य रूप से श्रीअरविन्द के बारे में सोचना...
श्रीअरविंद जगत् को उस भविष्य के सौन्दर्य के बारे में बतलाने आए थे जिसे चरितार्थ करना ही होगा । वे उस भव्यता की आशा ही...