श्रद्धा का परम कर्म
ठीक उस समय जब हर चीज़ बद-से-बदतर होती हुई मालूम होती है, उसी समय हमें श्रद्धा का परम कर्म करना चाहिये और यह जानना चाहिये...
ठीक उस समय जब हर चीज़ बद-से-बदतर होती हुई मालूम होती है, उसी समय हमें श्रद्धा का परम कर्म करना चाहिये और यह जानना चाहिये...
तुम्हें हमेशा पूरी-पूरी सहायता दी जाती है, लेकिन तुम्हें उसे अपने बाहरी साधनों द्वारा नहीं बल्कि अपने हृदय की नीरवता में ग्रहण करना सीखना होगा।...
’भागवत कृपा’ कार्य करने के लिए हमेशा मौजूद है लेकिन तुम्हें उसे कार्य करने देना चाहिये, उसकी क्रिया का प्रतिरोध नहीं करना चाहिये। एकमात्र आवश्यक...
’भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य ? सभी तो उसी एक दिव्य ‘मां’ के बालक हैं । ‘उनका’ प्रेम उन...
साधक को हमेशा यह याद रखना चाहिये कि प्रत्येक वस्तु आन्तरिक मनोवृत्ति पर निर्भर करती है; यदि उसे भागवत कृपा पर सम्पूर्ण श्रद्धा हो तो...
अपने अहंकार को निकाल फेंकना, उसे एक रद्दी कपड़े की तरह गिरा देना। इसके लिए जो प्रयास करना पड़ता है, परिणाम उसके योग्य होता है, और...
किसी भी तरह के हतोत्साह को अपने ऊपर हावी मत होने दो और ‘भागवत कृपा’ पर कभी अविश्वास न करो। तुम्हारे बाहर, तुम्हारे चारों ओर...
प्यारी माताजी, मुझे सर्दी हो गयी है, क्या मैं रोज़ की तरह स्नान करूँ ? जो तुम्हें पसंद हो करो, इसका बहुत महत्व नहीं है;...