केवल अंश ही
पूर्णयोग के साधक को यह अवश्य स्मरण रखना चाहिये कि कोई भी लिखित शास्त्र नित्य ज्ञान के केवल कुछ एक अंशों को ही प्रकट कर...
पूर्णयोग के साधक को यह अवश्य स्मरण रखना चाहिये कि कोई भी लिखित शास्त्र नित्य ज्ञान के केवल कुछ एक अंशों को ही प्रकट कर...
ऐसा लगता है कि तुम यह मानते हो कि मैं एक बात कहती हूं और मेरा मतलब कुछ और होता है । यह अनर्गल बात...
तुम्हें दो चीजें कभी न भूलनी चाहियें : श्रीअरविन्द की अनुकम्पा और दिव्य मां का प्रेम । इन दो चीजों के साथ तुम शत्रुओं को...
तुम्हारी मानव-दृष्टि चीजों को एक सीधी लकीर में देखती है । तुम्हारे लिए या तो यह तरीका है या वह । मेरे लिए ऐसा नहीं...
सारी मुश्किल इस बात से आती है कि तुम किसी के साथ तब तक सामञ्जस्य नहीं कर सकते जब तक कि वह तुम्हारे अपने विचारों...
..मेरे और तुम्हारे बीच एक विशेष सम्बन्ध है, उन सबके साथ जो मेरी और श्रीअरविन्द की शिक्षा की ओर मुंडे हुए हैं, – और, यह...
समग्र योग इसलिए कहा गया है क्योंकि आध्यात्मिक सिद्धि तथा अनुभव की सामंजस्यपूर्ण संपूर्णता प्राप्त करना इसका लक्ष्य है। इसका लक्ष्य है भागवत सत्य का...
अतिमानसिक चेतनाके विषयमें बातें करना और उसे अपने अन्दर उतारने- की बात सोचना सबसे अधिक खतरनाक है । यह महान् कार्य करने की पूर्ण लालसा...
योग का उद्देश्य कोई महान् योगी या अतिमानव होना नहीं है। यह योगको अहंकारपूर्ण ढंगसे ग्रहण करना है और इससे कोई भलाई नहीं हो सकती...
योग का उद्देश्य शक्ति प्राप्त करना या दूसरों से अधिक शक्तिशाली बनना अथवा सिद्धियां प्राप्त करना अथवा महान् या आश्चर्यजनक या चमत्कारपूर्ण कार्य करना नहीं...