
जब मनुष्य अपने-आपको जान लेगा
…. मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई है, यह एक ऐसे बीहड़ वन के समान गहन और...
…. मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई है, यह एक ऐसे बीहड़ वन के समान गहन और...
एक परम चेतना है जो अभिव्यक्ति पर शासन करती हैं। निश्चय ही उसकी बुद्धि हमारी बुद्धि से बहुत महान है। इसलिए हमें यह चिंता नहीं...
मैं भौतिक जगत् में, धरती पर क्या लाना चाहती हूं : १. पूर्ण ‘चेतना’। २. पूर्ण ‘ज्ञान’, सर्वज्ञता। ३. अजेय शक्ति, अप्रतिरोध्य और अपरिहार्य सर्वशक्तिमत्ता।...
क्या चेतना के सुधार से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति सुस्थिर हो जाती है? यदि “चेतना के सुधार” का मतलब है बढ़ी हुई, विशालतर चेतना, उसकी...
बाह्य कर्मों में अहंकार प्रायः छिपा रहता है और बिना पते लगे स्वयं को संतुष्ट करता रहता है – लेकिन, जब साधना का दबाव पड़ता...
पूर्णयोग का अर्थ यह नहीं है कि व्यक्ति इस भौतिक जगत् को सदा के लिए इसके भाग्य पर छोड़ कर इससे भाग खड़ा हो, न...
आध्यात्मिक पथ-प्रदर्शक से पूरी तरह लाभ उठाने के लिए शिष्य को तीन शर्तों को निभाना होता है। पहली: उसे किसी भी विरोधी या किसी भी...
दिन में आधे घंटे का ध्यान संभव होना चाहिये – यदि चेतना में केवल एकाग्रता की आदत डालनी हो, जो पहले तो कार्य करते समय...
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या होता है ? सामान्य अज्ञानभरी मानव चेतना से निकल कर...
सन्यासी होना अनिवार्य नहीं है – यदि कोई ऊपरी चेतना में रहने के बजाय आन्तरिक चेतना में रहना सीख जाये, अपनी अन्तरात्मा या सच्चे व्यक्तित्व...