प्रगति के लिये प्रयास
माताजी, हर बार जब मैं अपनी चेतना में जरा उठने की कोशिश करता हूँ तो एक धक्का-सा लगता है और ऐसा मालूम होता है कि...
माताजी, हर बार जब मैं अपनी चेतना में जरा उठने की कोशिश करता हूँ तो एक धक्का-सा लगता है और ऐसा मालूम होता है कि...
भागवत कृपा हमेशा रहती है, शाश्वत रूप से उपस्थित और सक्रिय; लेकिन श्रीअरविंद कहते हैं कि हमारे लिए उसे ग्रहण करने, बनाये रखने और वह...
हमारी मानव चेतना में ऐसी खिड़कियाँ हैं जो शाश्वत में खुलती हैं । लेकिन मनुष्य साधारणत: इन खिड़कीयों को सावधानी से बन्द रखते हैं ।...
… जिस क्षण तुम यह कल्पना करते और किसी-न-किसी तरह अनुभव करते हो, या , प्रारम्भ में, इतना मान भी लेते हो कि भगवान् तुम्हारें...
जो कुछ मनुष्य सच्चाई के साथ और निरंतर भगवान् से चाहता है, उसे भगवान् अवश्य देते हैं। तब यदि तुम आनंद चाहो और लगातार चाहते...
तुम्हारी चेतना की गहराइयों में तुम्हारे अंदर रहने वाले भगवान का मंदिर, तुम्हारा चैत्य पुरुष है। यही वह केंद्र है जिसके चारों ओर तुम्हारी सत्ता...
अभीप्सा का तात्पर्य है, शक्तियों को पुकारना । जब शक्तियाँ प्रत्युत्तर दे देती हैं, तब शान्त-स्थिर ग्रहणशीलता की, एकाग्र पर स्वतःस्पर्श ग्रहणशीलता की एक स्वाभाविक...
मैं तुम्हारे साथ हूं क्योंकि मैं तुम हूं या तुम में हो । मैं तुम्हारे साथ हूं , इसके बहुत सारे अर्थ होते हैं ,...
तुम्हें आंतरिक परिवर्तन के लिए निरन्तर अभीप्सा करनी चाहिये, तुम्हारें अंदर यह इच्छा होनी चाहिये कि प्रकाश तुम्हारे अंधेरे भौतिक मन में आये, और तुम्हें...
मनुष्य को जो कुछ उसे मिलता है उससे संतुष्ट रहना चाहिये फिर भी शांत- रूप से, बिना संघर्ष के, और अधिक पाने के लिये अभीप्सा करनी...