मधुर माँ, आप हमारी तरह क्यों नहीं आयीं? आप सचमुच जैसी है उस तरह क्यों नहीं आयीं? क्योंकि अगर मैं…
(आश्रम के क्रीड़ांगण में २९ फरवरी १९५६ को बुधवार के सार्वजनिक ध्यान के समय) आज की सांझ तुम लोगों के…
सामुदायिक जीवन में अनिवार्य रूप से अनुशासन होना चाहिये ताकि मजबूत कमजोर के साथ दुर्व्यवहार न कर सके; और जो…
भारत को जगत् का आध्यात्मिक नेता होना ही चाहिये । अन्दर तो उसमें क्षमता है, परन्तु बाहर... अभी तो सचमुच…
देशभक्ति की भावनाएँ हमारे योग की विरोधी बिलकुल नहीं हैं, बल्कि अपनी मातृभूमि की शक्ति तथा अखंडता के लिए संकल्प…
मनुष्य बीते कल की सृष्टि है । श्रीअरविंद आगामी कल की सृष्टि - अतिमानसिक सत्ता के आने - की घोषणा…
जब मैंने उनसे (८ दिसम्बर १९५०) को अपने शरीर को पुनर्जीवित करने के लिए कहा, तो उन्होने स्पष्ट उत्तर दिया…
श्रीअरविंद निरंतर हमारे साथ हैं और जो लोग उन्हें देखने और सुनने के लिए तैयार हैं उनके आगे अपने -…
श्रीअरविंद ने अपना शरीर परम निस्वार्थता की क्रिया में त्यागा है। उन्होने अपने शरीर की उपलब्धियों को इसलिए त्यागा कि…
शोक करना श्रीअरविंद का अपमान है, वे हमारे साथ सचेतन और जीवित रूप में विध्यमान है । संदर्भ : माताजी…