माताजी के वचन भाग-१

श्रीमाँ अपने विषय में

मधुर माँ,  आप हमारी तरह क्यों नहीं आयीं? आप सचमुच जैसी है उस तरह क्यों नहीं आयीं? क्योंकि अगर मैं…

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प्रथम अतिमानसिक अवतरण

(आश्रम के क्रीड़ांगण में २९ फरवरी १९५६ को बुधवार के सार्वजनिक ध्यान के समय) आज की सांझ तुम लोगों के…

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अनुशासन की अनिवार्यता

सामुदायिक जीवन में अनिवार्य रूप से अनुशासन होना चाहिये ताकि मजबूत कमजोर के साथ दुर्व्यवहार न कर सके; और जो…

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भारत के विषय में

भारत को जगत् का आध्यात्मिक नेता होना ही चाहिये । अन्दर तो उसमें क्षमता है, परन्तु बाहर... अभी तो सचमुच…

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देशभक्ति की भावना तथा योग

देशभक्ति की भावनाएँ हमारे योग की विरोधी बिलकुल नहीं हैं, बल्कि अपनी मातृभूमि की शक्ति तथा अखंडता के लिए संकल्प…

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श्रीअरविंद का कार्य

मनुष्य बीते कल की सृष्टि है । श्रीअरविंद आगामी कल की सृष्टि - अतिमानसिक सत्ता के आने - की घोषणा…

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श्रीअरविंद का शरीर

जब मैंने उनसे (८ दिसम्बर १९५०) को अपने शरीर को पुनर्जीवित करने के लिए कहा, तो उन्होने स्पष्ट उत्तर दिया…

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श्रीअरविंद की उपस्थिती

श्रीअरविंद निरंतर हमारे साथ हैं और जो लोग उन्हें देखने और सुनने के लिए तैयार हैं उनके आगे अपने -…

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श्रीअरविंद का शरीर त्याग

श्रीअरविंद ने अपना शरीर परम निस्वार्थता की क्रिया में त्यागा है। उन्होने अपने शरीर की उपलब्धियों को इसलिए त्यागा कि…

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श्रीअरविंद की महासमाधि – श्रीमाँ (२)

शोक करना श्रीअरविंद का अपमान है, वे हमारे साथ सचेतन और जीवित रूप में विध्यमान है । संदर्भ : माताजी…

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