एक ही चेतना
माताजी की चेतना और मेरी चेतना के बीच का विरोध पुराने दिनों का आविष्कार था (जिसका कारण मुख्यतया ‘क्ष’, ‘त्र’ तथा उस समय के अन्य...
माताजी की चेतना और मेरी चेतना के बीच का विरोध पुराने दिनों का आविष्कार था (जिसका कारण मुख्यतया ‘क्ष’, ‘त्र’ तथा उस समय के अन्य...
मनुष्यों को उनके दुख-दर्द से छुटकारा दिलाने के प्रबल आवेग को ही अनुकम्पा या करुणा कहा जाता है। किसी के दु:ख – दर्द को देख...
सुख और शान्ति अपने अन्दर बहुत गहराई में और दूर इसलिए अनुभव होते हैं क्योंकि ये चीजें चैत्य सत्ता में होती हैं और चैत्य सत्ता...
मैंने बहुत बार लोगों को यह कहते सुना है: “ओह ! अब जब में अच्छा बनने की कोशिश करता हूँ तो ऐसा लगता है कि...
विभिन्न मूल्य रखने वाले लोग एक साथ, सामंजस्य मैं कैसेे रह सकते और काम कर सकते हैं? इसका समाधान यह है कि अपने अंदर...
किसी भी साधक को कभी भी अयोग्यता के और निराशाजनक विचारों नहीं पोसना चाहिये-ये एकदम से असंगत होते हैं, क्योंकि व्यक्ति की निजी योग्यता तथा...
यदि अधिकतर भारतीय सचमुच अपने सम्पूर्ण जीवन को सच्चे अर्थ में धार्मिक बना पाते तब हम लोगों की ऐसी स्थिति नहीं होती जैसी आज है।...
जो लोग सत्यके अनुसार अपना-जीवन व्यतीत करना चाहते हैं, उनके लिये एकमात्र मार्ग है भागवत उपस्थिति के प्रति सचेतन होना और केवल उन्हीं की इच्छा...
भगवान की सेवा से बढ़ कर और कोई हर्ष नहीं हो सकता। संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
जब तक हम वर्तमान विश्व-चेतना में निवास करते हैं तब तक यह जगत, जैसा कि गीता ने कहा है, ‘अनित्यमसुखम’ है। उससे विमुख हो केवल...