
प्रकाश – श्रीअरविन्द की कविता
प्रकाश, अन्तहीन प्रकाश! अंधेरे को नहीं अब अवकाश, जीवन की अज्ञानी खाइयां तज रहीं अपनी गोपनता : विशाल अवचेतन-गहराइयां जो पहले अज्ञात थीं फैली हैं...
प्रकाश, अन्तहीन प्रकाश! अंधेरे को नहीं अब अवकाश, जीवन की अज्ञानी खाइयां तज रहीं अपनी गोपनता : विशाल अवचेतन-गहराइयां जो पहले अज्ञात थीं फैली हैं...
योगी, सन्यासी, तपस्वी बनना यहाँ का उद्देश्य नहीं हैं। हमारा उद्देश्य है रूपांतर, और तुमसे अनंतगुना बड़ी शक्ति के द्वारा ही यह रूपान्तर सम्पन्न किया...
किसी भी तरह के हतोत्साह को अपने ऊपर हावी मत होने दो और ‘भागवत कृपा’ पर कभी अविश्वास न करो। तुम्हारे बाहर, तुम्हारे चारों ओर...
एक तरु रेतीले सर-तीर बढ़ाये अपने लंबे डाल अंगुलियों से ऊपर की ओर चाहता छूना गगन विशाल । किन्तु पायेंगे क्या वे स्वर्ग प्रणय-रस...
चेतना के परिवर्तन द्वारा वस्तुओं की बाहरी प्रतीतितियों से निकल कर उनके पीछे की सच्चाई में जाना समस्त योग का लक्ष्य है। उसके साथ किसी...
माताजी की सतत उपस्थिति अभ्यास के द्वारा आती हे; साधना में सफलता पाने के लिये भागवत कृपा अत्यंत आवश्यक है, पर अभ्यास ही वह चीज है जो...
कुछ लोगो को श्रीमाँ के चारों और ज्योति आदि के दर्शन होते हैं पर मुझे नहीं होते । मेरे अंदर क्या रुकावट है ? यह...
यह योग सत्ता के रूपांतरण का योग है, न कि मात्र आंतरिक सत्ता या भगवान की उपलब्धि का, यद्यपि इसके आधार में वह उपलब्धि ही...
जब मानसिकता पीछे छूट जाती है तथा निष्क्रिय नीरवता में दूर चली जाती है, केवल तभी अतिमानसिक विज्ञान का पूर्ण उद्घाटन और उसकी प्रभुत्व-सम्पन्न तथा...
(प्रभो), दिन के साथ – साथ रात में भी हमेशा मेरे साथ रहो। वर दो कि जाग्रत अवस्था के साथ-साथ नींद में भी मैं हमेशा...