श्रीअरविंद के वचन

श्रद्धा के साथ

"श्रद्धा के साथ जो कोई भक्त मेरे जिस किसी रूप को पूजन चाहता है, मैं उसकी वही श्रद्धा उसमें अचल-अटल…

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विश्वास

श्रीमाँ तथा श्रीअरविंद की सहायता हमेशा तुम्हारे लिए प्रस्तुत है। तुम्हें पूरी तरह से उसके प्रति मुड़ना-भर है और वह…

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नरक और स्वर्ग

नरक और स्वर्ग तो बहुधा आत्मा की काल्पनिक अवस्थाएँ होती हैं, बल्कि कहना चाहिये प्राण की अवस्थाएँ, जिन्हें वह प्रयाण…

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श्रीमाँ के विषय में

यहाँ पर कुछ लोग आपको माताजी से महानतर क्यों मानते हैं ? क्या आप दोनों समान स्तर से नहीं हैं…

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साक्षी चेतना का मनोभाव

... यदि वे (मानसिक तथा प्राणिक) सत्ताएँ सदा सक्रिय रहती हैं और तुम सदा उनकी गतिविधियों के साथ तदात्म रहते…

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नरक का अर्थ

नरक और स्वर्ग तो बहुधा आत्मा की काल्पनिक अवस्थाएँ होती हैं, बल्कि कहना चाहिये प्राण की अवस्थाएँ, जिन्हें वह प्रयाण…

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भक्ति का सिद्धान्त

भगवान हृदय में देखते हैं और जब समझते हैं कि अब ठीक समय आ गया है, तब पर्दा हटा देते…

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सावित्री अमृत

यह सम्पूर्ण प्रकृति इक मूक भाव से केवल मात्र उसी को पुकारती है, कि तपकते पीड़ाकूल जीवन के व्रण उसके…

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माताजी का स्मरण

प्रश्न-जब साधक में न तो अभीप्सा ही उठती हो, न कोई अनुभूति ही होती हो, तब उसे साधना जारी रखने…

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अभीप्सा की क्षमता

प्रश्न : क्या अभीप्सा की क्षमता अलग-अलग साधकों में उनकी प्रकृति के अनुसार बदलती रहती है ? उत्तर: नहीं, अभीप्सा…

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