भय को उठा फेंको
प्यारी माताजी, मुझे सर्दी हो गयी है, क्या मैं रोज़ की तरह स्नान करूँ ? जो तुम्हें पसंद हो करो, इसका बहुत महत्व नहीं है;...
प्यारी माताजी, मुझे सर्दी हो गयी है, क्या मैं रोज़ की तरह स्नान करूँ ? जो तुम्हें पसंद हो करो, इसका बहुत महत्व नहीं है;...
कोई आसक्ति न हो, कोई कामना न हो, कोई आवेग न हो, कोई पसंद न हो; पूर्ण समता हो, अचल शांति हो और भागवत सरंक्षण...
हर बार जब तुम बेचैन होओ तो तुम्हें दोहराना चाहिये – बाह्य ध्वनि के बिना अपने भीतर बोलते हुए और साथ-साथ मेरा स्मरण करते हुए...
साधारण रूप से, सामान्य मनुष्य में भौतिक, शारीरिक चेतना चीजों को वैसे नहीं देखती जैसी कि वे वस्तुतः है , यह तीन कारणों से है...
व्यक्ति को हमेशा हँसना चाहिये, हमेशा। ‘प्रभु’ हँसते है और हँसते रहते हैं। ‘उनका’ हास्य इतना अच्छा है, इतना अच्छा है, प्रेम से इतना परिपूर्ण...
जब हम अपनी चेतना से समस्त पराजयवाद को निकाल फेकेंगे तब हम सिद्धि की दिशा में एक बहुत बड़ी छलांग लगायेंगे। भागवत कृपा में अपनी...
मधुर माँ, हम दूसरे की आवश्यकता को कैसे जान सकते और उसकी सहायता कैसे कर सकते हैं ? मैं बाहरी चीजों और मानसिक क्षमताओं की...
लोगों का विश्वास है कि संदेह करना श्रेष्ठता का एक चिन्ह है, परंतु वास्तव में, वह निकृष्टता का एक चिन्ह है । संदर्भ : विचार...
श्रीमाँ एक तश्तरी में टॉफी लेकर आती थी तथा ऊपर के बरामदे में प्रतीक्षा करते हुए हर साधक को एक-एक टॉफी फेंकती थीं। साधक उन्हें...