जो मन की पहुँच से अति परे है मैं वह परम गुह्यता हूं, सूर्यों की श्रमसाध्य परिक्रमाओं की मैं लक्ष्य…
श्रीमाँ के साथ आन्तरिक संपर्क बढ़े - जब तक वह न होगा, बाहरी संपर्को की बहुलता के द्वारा आसानी से…
जीवन की भांति योग में भी वही मनुष्य जो प्रत्येक पराजय एवं मोहभंग के सामने तथा समस्त प्रतिरोधपूर्ण, विरोधी ओर निषेधकारी…
संकुचित अनुभव की एक संकीर्ण झालर सम इस जीवन को जो हमारी बांट में आया है, पीछे छोड़ देते हैं,…
मन जिसे जानता नहीं था ऐसे सत्य ने अपना मुख प्रकटा दिया तब हम वह श्रवण कर सकते हैं, जो…
वर्तमान में हम जो देख पाते हैं वह आने वाली भावी की एक छाया मात्र है। संदर्भ : "सावित्री"