जो लोग इस कारण यातना भोगते हैं कि उन्हें किसी तथाकथित संन्यासी से परिचित होने का दुर्भाग्य प्राप्त हुआ था, उनकी संख्या प्रचुर है, प्रचुर। मैं तुम्हें डराने के लिए यह बात नहीं कह रही हूं, क्योंकि तुम यहां सुरक्षित हो, बल्कि इसलिए कि यह एक तथ्य है। दीक्षा प्राप्त करते समय ये लोग प्राण-जगत् की किसी शक्ति का प्रभाव ग्रहण कर लेते हैं जो बहुत अधिक खतरनाक है…। सर्वदा ऐसी बात नहीं होती, परन्तु अधिकतर ऐसा ही होता है।
कारण, इस जगत् में सच्चाई इतना दुर्लभ गुण है कि यदि कोई इसे देखे तो उसे इसके सामने आदर के साथ सिर झुका देना चाहिये। “सच्चाई”, जिसे हम सच्चाई कहते हैं, अर्थात्, पूर्ण ईमानदारी और पारदर्शकता : अर्थात् कहीं कोई चीज ऐसी नहीं होनी चाहिये जो झूठा दावा करती हो, अपने को छिपाती हो अथवा जो कुछ वह नहीं है वैसी स्वीकृत होना चाहती हो।
संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९५६
जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…
‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…
सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…