हमेशा स्थिर और शांत रहने के लिए बहुत सावधान रहो और सम्पूर्ण समचित्ता को आधिकाधिक पूर्णता के साथ अपनी सत्ता में प्रतिष्ठित होने दो। अपने मन को बहुत ज्यादा सक्रिय होकर हो-हल्ले और विक्षोभ में न रहने दो, चीजों के ऊपरी आभास से ही परिणामों तक न जा पहुँचो। जल्दबाज़ी न करो , एकाग्र होकर स्थिरता में ही निश्चय करो ।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-३)
"आध्यात्मिक जीवन की तैयारी करने के लिए किस प्रारम्भिक गुण का विकास करना चाहिये?" इसे…
शुद्धि मुक्ति की शर्त है। समस्त शुद्धीकरण एक छुटकारा है, एक उद्धार है; क्योंकि यह…
मैं मन में श्रीअरविंद के प्रकाश को कैसे ग्रहण कर सकता हूँ ? अगर तुम…
...पूजा भक्तिमार्ग का प्रथम पग मात्र है। जहां बाह्य पुजा आंतरिक आराधना में परिवर्तित हो…