१९१९ में श्रीअरविंद ने लिखा था कि अस्तव्यसत्ता और विपत्तियाँ शायद एक नयी सृष्टि की प्रसव-वेदना हैं। यह स्थिति कब तक चलती रहेगी? यह वेदना आश्रम में, भारत में और अंत में जगत में कब तक चलेगी?
यह तब तक चलती रहेगी जब तक जगत नयी सृष्टि का स्वागत करने के लिए तैयार और इच्छुक न हो ; इस नयी सृष्टि की चेतना धरती पर इस वर्ष के आरम्भ से कार्य कर ही रही है। अगर प्रतिरोध करने की बजाय लोग सहयोग दें तो काम ज़्यादा जल्दी होगा। लेकिन मूढ़ता और अज्ञान बहुत दुराग्रही हैं !
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-३)
"आध्यात्मिक जीवन की तैयारी करने के लिए किस प्रारम्भिक गुण का विकास करना चाहिये?" इसे…
शुद्धि मुक्ति की शर्त है। समस्त शुद्धीकरण एक छुटकारा है, एक उद्धार है; क्योंकि यह…
मैं मन में श्रीअरविंद के प्रकाश को कैसे ग्रहण कर सकता हूँ ? अगर तुम…
...पूजा भक्तिमार्ग का प्रथम पग मात्र है। जहां बाह्य पुजा आंतरिक आराधना में परिवर्तित हो…