समता के बिना साधना में दृढ़ आधार नहीं बन सकता। परिस्थितियाँ चाहे कितनी भी अप्रिय हों, दूसरों का व्यवहार चाहे कितना भी अरुचिकर हो, तुम्हें पूर्ण स्थिरता के साथ तथा किसी विक्षुब्धकारी प्रतिक्रिया के बिना उन्हें ग्रहण करना होगा। ये चीजें समता की कसौटी हैं। जब चीजें ठीक-ठाक हों तथा लोग और परिस्थितियाँ सुखद हों तब स्थिर-चित्त रहना आसान है। जब ये प्रतिकूल हों तब स्थिरता, शान्ति, समता की जाँच की जा सकती है, उन्हें सुदृढ़ तथा पूर्ण बनाया जा सकता है ।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र भाग – २
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…