व्यापक दृष्टि से विचार करने पर मुझे ऐसा लगता है कि प्रचार करने योग्य सबसे उपयोगी विचार दोहरा है:
(१) मनुष्य स्वयं अपने अन्दर ही पूर्ण शक्ति, पूर्ण विवेक और पूर्ण ज्ञान को वहन करता है और वह यदि उन पर अपना अधिकार प्राप्त करना चाहे तो उसे अन्तनिरीक्षण तथा चित्त की एकाग्रता के द्वारा उन्हें अपनी सत्ता की गहराई में खोजना चाहिये।
(२) ये सभी दिव्य गुण सभी प्राणियों के केन्द्रस्थल में, हृदय में एक समान पाये जाते हैं और वहीं से आती है सबको मौलिक एकता और उसके फलस्वरूप पारस्परिक सम्बन्ध तथा भ्रातृत्व।
प्रस्तुत करने योग्य सर्वोत्तम उदाहरण होगा, शुद्ध प्रशान्ति और अपरिवर्तनीय शान्ति से पूर्ण आनन्द का उदाहरण। ये चीजें उस मनुष्य के स्वाभाविक गुण बन जाती है जो सम्पूर्ण रूप से इस विचार के अनसार जीवन-यापन करना जानता है कि सबके अन्दर एक ही भगवान् विराजमान हैं ।
संदर्भ : पहले की बातें
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…