… क्यों न सरल-सीधे ढंग से भगवान की ओर आगे बढ़ा जाये? सरल भाव से बढ्ने का मतलब है उन पर विश्वास रखना । यदि तुम प्रार्थना करते हो तो विश्वास रखो कि वे सुनते हैं । यदि उत्तर आने में देर लगती हो तो विश्वास रखो कि वे जानते हैं और प्रेम करते हैं तथा समय का चुनाव करने के बारे में परम बुद्धिमान हैं। इस बीच चुपचाप जमीन साफ करो ताकि जब वे आयें तो उन्हें कंकड़-पत्थर और झाड-झंखाड़ पर लड़खड़ाना न पड़ें। यही मेरा सुझाव है और जो कुछ मैं कह रहा हूँ, उसे मैं खूब समझता हूँ – क्योंकि तुम चाहे जो कहो, मैं सभी मानव-कठिनाइयों और संघर्षों से अच्छी तरह परिचित हूँ और उनका इलाज भी मुझे मालूम है । इसी कारण मैं सदा ऐसी चीजों पर ज़ोर देता हूं जो संघर्षों और कठिनाइयों को बहुत कम तथा छोटा कर देंगी – आन्तरात्मिक झुकाव, श्रद्धा, पूर्ण और सरल विश्वास तथा भरोसा।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (भाग-२)
अगर तुम्हारी श्रद्धा दिनादिन दृढ़तर होती जा रही है तो निस्सन्देह तुम अपनी साधना में…
"आध्यात्मिक जीवन की तैयारी करने के लिए किस प्रारम्भिक गुण का विकास करना चाहिये?" इसे…
शुद्धि मुक्ति की शर्त है। समस्त शुद्धीकरण एक छुटकारा है, एक उद्धार है; क्योंकि यह…
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...पूजा भक्तिमार्ग का प्रथम पग मात्र है। जहां बाह्य पुजा आंतरिक आराधना में परिवर्तित हो…